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लेखनी कहानी -21-Feb-2023 बलिदान

अंजू और उसकी सहेली सुषमा अंजू के घर के सामने सड़क पर बातें कर रही थीं कि अचानक लोग बदहवास से दौड़ते हुए आने लगे और "भागो भागो जग्गी आया" चिल्ला कर सबको सतर्क करके अपने अपने घरों में घुसकर दरवाजा बंद करने लगे । अंजू और सुषमा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है ? वे भौंचक सी वहीं खड़ी रह गईं । इतने में अंजू की मम्मी ने दोनों का हाथ पकड़कर उन्हें अंदर खींच लिया और दरवाजा बंद कर कुंडी लगा दी । 

अंजू और सुषमा विचित्र सी निगाहों से अंजू की मम्मी को देखने लगी । अंजू ने ही पूछा "आखिर ये माजरा क्या है ? लोग इतने डरे हुए क्यों हैं ? और ये जग्गी कौन है जिसके लिए लोग कह रहे थे "जग्गी आया , जग्गी आया , भागो भागो । क्या बात है मम्मी" ? 

अंजू की मम्मी ने दोनों युवतियों को समझाते हुए कहा "जग्गी इस इलाके का छंटा हुआ गुंडा, बदमाश , डकैत , लुटेरा, हत्यारा, बलात्कारी, हिस्ट्रीशीटर है । वह एकदम कसाई है , दरिंदा है, क्रूर है, बर्बर है । वह इधर आ रहा है इसका मतलब यह है कि वह आज अपनी इस गली में किसी न किसी को लूटने आ रहा है । पता नहीं आज किस पर बिजली गिरने वाली है" ? अंजू की मम्मी अपनी बात पूरी करती उससे पहले ही एक जोरदार आवाज गूंज उठी 

"अरे ओ बनवारी सेठ, चुपचाप 50 लाख रुपए लेकर बाहर आ जा , नहीं तो मैं अंदर आऊंगा तो 1 करोड़ रुपए लेकर उठूंगा और यदि तेरे घर का कोई "माल" मुझे पसंद आ गया तो उसे उठाकर ले जाऊंगा । फिर तू मत कहना कि ये मेरी बहन है या बेटी है या कोई और है । समझ गया ना" ? 

जाहिर है कि यह आवाज जग्गी की ही थी । इस आवाज को सुनकर अंजू और सुषमा डर के मारे थर थर कांपने लगी । अंजू की मम्मी को बस एक ही डर लग रहा था कि कहीं वह इस घर में ना आ जाये । अगर आ गया तो फिर पता नहीं क्या होगा ? वह भगवान जी के सामने हाथ जोड़कर बैठ गई । 

अंजू और सुषमा दोनों को उत्सुकता थी कि देखें जग्गी क्या करता है ? इसलिए वे दोनों ऊपर के कमरे में चली गईं और जरा सी खिड़की खोलकर बाहर का नजारा देखने लगी । 

जग्गी को बाहर खड़े खड़े करीब दस मिनट हो गए थे । अंदर से जब कोई आवाज नहीं आई तब उसे बहुत गुस्सा आया । अंजू और सुषमा को उसका चेहरा साफ दिखाई दे रहा था । क्रोध के मारे उसकी आंखों से खून निकल रहा था । उसका चेहरा बहुत भयंकर था । एक तो काला रंग उस पर चेचक के अनेक गढ्ढे । सिर पर एक भी बाल नहीं । उम्र लगभग 40 वर्ष । शक्ल सूरत से ही वह राक्षस लग रहा था । वह बनवारी सेठ को लगातार मां बहन की गालियां दे रहा था और बड़बड़ा भी रहा था । 

जब बनवारी सेठ के घर से कोई जवाब नहीं आया तो उसने अपनी पूरी शक्ति लगाकर गेट पर ठोकर मारी । ठोकर की चोट से पूरा गेट हिल गया मगर टूटा नहीं । जग्गी के चेले गेट पर टूट पड़े । बेचारा गेट बनवारी सेठ की आबरू कब तक बचाता, एक बड़ी ठोकर में भरभराकर गिर पड़ा । जग्गी घर के अंदर घुसा। सामने वाला पूरा घर खिड़की से दिखाई दे रहा था जिसमें से अंजू और सुषमा देख रही थीं । डर के मारे शायद घर के सभी सदस्य कमरों में घुस गये थे । चौबारे या बरामदे में कोई नहीं था । इससे जग्गी दादा और भी ज्यादा आग बबूला हो गया । उसने एक जोरदार अट्टहास किया और कहा 
"देख सेठ, मुझे विवश मत कर खून खराबा करने को । चुपचाप बाहर आ जा नहीं तो अब मैं मारना शुरू कर दूंगा" । जग्गी दादा ने अंतिम फैसला सुना दिया । जग्गी दादा की आवाज सामने वाले घर में गूंज रही थी । 

थोड़ी देर बाद बनवारी सेठ की पत्नी एक कमरे में से बाहर निकल कर जग्गी दादा के पास आई और उसने अपना माथा जग्गी दादा के जूतों पर रख दिया और कहने लगी "रहम दादा रहम" 
"कैसा रहम ? काहे का रहम ? बुला तेरे सेठ को ? आज उसकी हड्डी पसली एक नहीं की तो मेरा नाम भी जग्गी दादा नहीं" । फुंफकारते हुए जग्गी दादा बोला । 
"वो यहां पर नहीं है । मैं बच्चों की कसम खाकर कह रही हूं, मेरा विश्वास करो , वे बाहर गये हुए हैं" बनवारी सेठ की औरत गिड़गिड़ाने लगी । लेकिन जग्गी दादा पर इसका क्या असर पड़ने वाला था ? उसने एक आखिरी चेतावनी और दी "सेठ बाहर निकल जा नहीं तो आज तेरी बीवी मेरे हाथों मारी जायेगी । मैं नारी पर हाथ पैर नहीं चलाता हूं मगर तू मुझे ऐसा करने को मजबूर कर रहा है । मैं पांच तक गिनती गिनूंगा । अगर तू आ गया तो ठीक नहीं तो तेरी बीवी आज मेरे हाथ से स्वर्ग सिधारेगी" । और इसी के साथ उसने गिनती शुरू की 
"एक" 
कोई हलचल नहीं हुई  । 
"दो" जग्गी फिर चीखा 
फिर भी कुछ नहीं हुआ तो जग्गी चिल्लाया "तीन" 
चारों ओर सन्नाटा फैला पड़ा था । 
"चार" जोर की आवाज आई  । 
कोई और आवाज नहीं आई तो जग्गी ने ऊंची आवाज में कहा "पांच" 
और उसके इतना कहते ही उसने एक भरपूर लात बनवारी सेठ की औरत के पेट में मारी । वह डकरा उठी । वह वहीं पर दोहरी हो गई और जमीन पर लेट गई । जग्गी ने एक लात उसके सीने में और मारी तो वह दर्द के मारे कराह उठी । उसके मुंह से खून निकलने लगा । अंजू और सुषमा यह दृश्य देख नहीं सकी और 'धम्म' से नीचे बैठ गई । बनवारी सेठ दौड़ता हुआ बाहर निकला और सीधा जग्गी दादा के चरणों में लेट गया । वह कहने लगा 
"क्षमा हुजूर" 
जग्गी दादा गुस्से में था ही इसलिए उसने एक जोरदार ठोकर उसकी नाक पर मारी । सेठ बनवारी भैंसे की तरह जोर से डकराया।  उसके नाक और मुंह से खून बहने लगा । घर में चीख पुकार मच गई । बनवारी सेठ की लुगाई जग्गी दादा के पैरों में लोट गई "इन्हें मत मारो चाहे मुझे मार डालो । ये मर जायेंगे तो हम अनाथ हो जायेंगे । हम पर रहम करो दादा , हमसे भूल हो गई है । आप जो मांगोगे हम वही देंगे" 

चीख पुकार सुनकर घर के अन्य सदस्य भी अपने दरवाजा  खोल खोलकर वहीं आ गये । सेठ बनवारी लाल की बेटी आशा कॉलेज में पढती थी । वह बला की खूबसूरत थी । मॉडर्न कपड़े पहनती थी । मतलब आधा शरीर छुपा हुआ और आधा उघाड़ा । उसके बदन से उसकी जवानी छलक रही थी । उसका फिगर देखकर जग्गा की आंखें चौंधिया गई । उसकी लार टपकने लगी । उसने आशा की ओर देखते हुए कहा 
"हम बचन का बहुत पक्का हूं । हमने पहले ही कहा था कि अगर मैं घर के अंदर घुसा तो पूरा एक करोड़ रुपया लूंगा । साथ में यह भी कहा था कि तेरे घर का कोई खूबसूरत 'माल' अगर पसंद आ गया तो उसे उठाकर ले जाऊंगा ।  ला, फटाफट एक करोड़ रुपए ले आ । और देख, हमें तेरी बेटी पसंद आ गई है । बड़ा खूबसूरत माल है ये तो । इसलिए इसे उठाकर ले जाऊंगा । कोई शक" ? 

जग्गी की इस बात पर आशा बिफर पड़ी "अपने बाप की जागीर समझ रखा है क्या ? ऐसे कैसे ले जायेगा तू ? तेरा ही राज चल रहा है क्या यहां पर ? बहुत देखे हैं तेरे जैसे गुंडे मवाली । अभी पुलिस को बुलवाती हूं" । वह पुलिस के नंबर डायल करने लगी । 

पुलिस की बात और उसके द्वारा चुनौती पेश करने पर जग्गी और भड़क गया और बोला "अब तो मामला टेढ़ा हो गया है । अब इसे उठाकर नहीं ले जाऊंगा बल्कि अब तो सबके सामने ही यहीं पर "सुहाग दिन" मनाऊंगा । अब तू और तेरे घरवाले देखेंगे कि जग्गा क्या चीज है ? अब तू मेरे सामने अपने कपड़े खोलकर आयेगी और मेरे कदमों में अपना सिर रखकर गिड़गिडायेगी कि मैं सुहाग दिन मनाने के लिए तैयार हूं तब ही मैं सुहाग दिन मनाऊंगा । तब तक मैं तेरे बाप की लातों से ठुकाई करता रहूंगा । और अगर यह पहले मर गया तो फिर तेरी मैया की ठुकाई करूंगा । अगर वह भी मर गई तो तेरे भाई के साथ भी वही करूंगा । एक एक करके सबके साथ ऐसा करूंगा जब तक कि तू मुझसे सुहाग दिन मनाने की भीख नहीं मांगेगी" । जग्गा ने अपना "ठोकर" अभियान शुरू कर दिया । बनवारी सेठ की चीखें गूंजने लगीं । पूरे घर में हाहाकार मच गया । बनवारी सेठ की हालत खस्ता हो गई और वह मरणासन्न हो गया । 

अपने पिता की यह हालत देखकर आशा थर थर कांपने लगी । वह जग्गा के पैरों में गिर कर दया की भीख मांगने लगी । उसे शायद पता नहीं था कि राक्षसों के पास दया नाम की कोई चीज नहीं होती है । जग्गी बनवारी सेठ को मारे जा रहा था । बनवारी सेठ मार खा खाकर बेहोश हो गया था मगर जग्गी का "ठोकर" अभियान बदस्तूर जारी रहा । आशा की हिम्मत और उसका धीरज दोनों ही जवाब दे गये थे । अभी तक पुलिस भी नहीं आई थी । अंत में वह जग्गा से बोली "मैं तैयार हूं" उसकी नजरें झुकी हुई थी । 

जग्गी कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं था । वह अपने शिकार पर जब टूटता था तो वह उसका आधा अधूरा नहीं बल्कि पूरा शिकार करता था । शिकार करने से पहले वह शिकार को मानसिक रूप से पूरी तरह छिन्न भिन्न कर देता था । आशा को भी मानसिक रूप से तहस नहस करने के लिए वह बोला 
"हमने कहा था कि तू अपने कपड़े उतार कर मेरे कदमों में सिर रखकर गिड़गिड़ायेगी और कहेगी कि मैं 'सुहाग दिन' मनाने के लिए तैयार हूं , तब जाकर इसे जीवन दान मिलेगा, इससे पहले नहीं" और वह फिर से अपने "ठोकर" अभियान में जुट गया । 

आशा अब बिल्कुल टूट गई थी । उसके पास अन्य कोई विकल्प नहीं था । मजबूर होकर उसे जग्गा की बात माननी पड़ी । उसने रोते हुए अपने घरवालों के सम्मुख ही अपने वस्त्र निकाले और फिर वह जग्गा के पैरों पर गिर कर दया की भीख मांगने लगी । जग्गा ने भी उस पर थोड़ा रहम दिखाया और उसे पास के एक कमरे में ले गया । करीब पंद्रह मिनट बाद जब वह उस कमरे से निकला तो उसने बाहर चार व्यक्तियों को मुर्गा बने पाया । वह कुछ समझ पाता इससे पहले उसका एक गुर्गा आकर बोला 
"बॉस, उस लड़की ने पुलिस बुलवाई थी ना , ये चारों हरामी पुलिस वाले यहां आ गये थे । हमने इन्हें मार मारकर अधमरा कर दिया है और अब ये मुरगे बनकर 'कुकड़ूं कूं' बोल रहे हैं । और कोई आदेश हो तो बतायें" 
"शाबास मेरे शेरो, बहुत बढिया काम किया है तुमने" । जग्गी उन मुरगा बने पुलिस वालों के पास गया और सबको एक एक ठोकर मारी । जग्गी कहने लगा "सालो, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इधर आने की ? तुम्हें क्या पता नहीं था कि तुम्हारा बाप यहां 'रासलीला' रचा रहा है ? तुमने यहां आकर कर भी क्या लिया ? क्या मिला तुम्हें ? मार पिटाई और अपमान ? जब मैं हर पुलिस वाले को हजारों रुपए हर,महीने देता हूं तो वह रुपया और काहे के लिए देता हूं ? आगे फिर कभी मेरे रास्ते में आये ना तो वो हाल करूंगा कि तुम्हारी सात पुश्तों की रूह भी कांप जायेगी" उसने चारों पुलिस वालों पर थूक दिया । 

फिर उसने अपने गुर्गे से कहा "चल रे लगा तो एक फोन उस कुत्ते थानेदार को , आज उससे भी निबट ही लेना चाहिए" । जग्गा भयंकर गुस्से में था । गुर्गे ने थानेदार को फोन लगाकर जग्गा को दे दिया । जग्गा ने उसका स्पीकर ऑन कर बात करना शुरू किया 
"क्यों बे कुत्ते ! ये चार हीजड़े काहे भेजे थे तूने" ? 
"हुकम, मैंने नहीं भेजे , अपने आप चले गये थे साले" उधर से घिघियाते हुए थानेदार बोला 
"जब हम पुलिस को अपना 'स्टॉफ' मानते हैं और पूरे थाने को दस लाख रुपए महीना देते हैं तो काहे को देते हैं ? पुलिस भेजने को ? अगर अबकी बार तूने पुलिस भेज दी तो मैं तेरे घर आकर तेरी बेटी के साथ भी तेरे ही सामने वही करूंगा जो मैंने बनवारी सेठ की बेटी के साथ किया है । समझ गया कि और समझाऊं" ? चारों पुलिस वालों को सुनाते हुए उसने कहा था । 

वहां पर उपस्थित सभी लोग जग्गी दादा का प्रभाव देखकर भयभीत हो गये । जग्गी दादा ने अपने गुर्गे से कहा "तू जाकर कमरे से इसकी बेटी को ले आ । ये हमारे साथ तब तक रहेगी जब तक कि एक करोड़ रुपए  नहीं आ जायें" । फिर उसने बनवारी सेठ को कहा "पैसे लेकर आ जाना और अपनी बेटी को ले जाना" । और जग्गी आशा को लेकर वहां से चला गया । 

(शेष अगले अंक में) 

श्री हरि 
21.2.23 


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11 Comments

RISHITA

29-Sep-2023 07:15 AM

Very nice

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madhura

20-Jul-2023 10:02 AM

Very nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

20-Jul-2023 01:55 PM

🙏🙏

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Babita patel

07-Jul-2023 11:35 AM

ला जवाब भाग

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Hari Shanker Goyal "Hari"

20-Jul-2023 01:55 PM

हार्दिक अभिनंदन मैम

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